दरभा घास के फायदे बहुत सारे हैं. दुर्वा ग्रास या घास का प्रयोग सनातन के अंदर सदियों से होता चला आ रहा है, दुर्वा ग्रास को कुश ग्रास के नाम से भी जाना जाता है. दुर्वा या दरभा घास लगभग लगभग भारत के सभी हिस्सों में पाई जाती है. इसका प्रयोग कई प्रकार से किया जाता है. आइए चर्चा करते हैं, दरभा घास के फायदे को लेकर —
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दरभा घास मैट
प्राचीन समय से ही भारत में चटाई बनाने के लिए दरभा घास का प्रयोग होता चला आ रहा है. दरभा घास से बनाई गई चटाई को काफी पवित्र माना जाता है. इसका प्रयोग मुख्यतः प्राचीन समय से यज्ञ में बैठने के लिए किया जाता रहा है. आज के समय में योगा कार्य को करने के लिए भी दरभा घास मैट (Darbha Grass Mat) का प्रयोग होने लगा है, क्योंकि इस घास के अपने आयुर्वेदिक फायदे होते हैं, इसलिए यह सबसे पहली पसंद बनती चली जा रही है.
ग्रहण काल में
भारत में प्राचीन समय से ही मान्यता है कि ग्रहण काल में हानिकारक विकिरण से भोज्य पदार्थ को बचाने के लिए उसके अंदर दुर्वा घास की पत्तियां डालकर रखी जाती है. असल में इस दौरान बैक्टीरिया का प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, और यह बहुत तेजी से ग्रोथ करते हैं. इसीलिए भोजन में दुर्वा घास की पत्तियों को डाल कर रखा जाता है, और ग्रहण खत्म होने के बाद इन्हें निकाल दिया जाता है. दुर्वा घास की पत्तियों के प्रभाव से व्यक्ति दिया भोज्य पदार्थों में अपनी ग्रोथ नहीं कर पाते हैं.
आयुर्वेद में उपयोग
आयुर्वेद के अंदर दुर्वा घास का प्रयोग जड़ी-बूटी के रूप में होता है. यह कई सारे संक्रामक रोगों में काफी फायदेमंद होती है. इसके अंदर एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जिसके कारण ही एक आवश्यक जड़ी-बूटी के रूप में पहचानी जाती है.
दरभा घास से रस्सी बनाना : प्राचीन समय से ही दरबा घास का प्रयोग रस्सी बनाने के लिए किया जाता है. इससे बनाई गई रस्सी काफी मजबूत मानी जाती हैं, और इनका प्रयोग धार्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है.
एसेंस और ऑयल
आयुर्वेदिक उद्देश्यों के लिए और अपने जीवन में कई दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दुर्वा घास का एसेंस और तेल प्राचीन विधियों से बनाया जाता है. मुख्यता इसका उपयोग गर्मियों में शीतलता के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
धार्मिक कार्य
आज भी सनातन धर्म के अंदर कुशा का प्रयोग पूजा पाठ के अंदर नियमित तौर पर किया जाता है. सनातन धर्म के सांस्कृतिक और धार्मिक कार्य में दुर्वा घास का अपना एक विशेष स्थान है.
भारत के अंदर हर एक क्षेत्र में दुर्वा घास को लेकर अपने-अपने प्रयोग किए जाते हैं. अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उसका प्रयोग अपने जीवन में किया जाता है उनसे अपने जीवन में प्रयोग होने वाली आवश्यक वस्तुओं का निर्माण भी उनसे होता है. जैसे कि बच्चों के लिए खेल खिलौने और बैठने के लिए आसन वगैरा भी ग्रामीण क्षेत्रों में कुशा के माध्यम से तैयार किए जाते हैं.