प्राचीन ऋषियों द्वारा पुत्री प्राप्ति के दिए गए पांच सूत्र - Putri Prapti ke Tarike
नमस्कार दोस्तों आज के POST में हम पुत्र प्राप्ति के लिए प्राचीन ग्रंथों में दिए गए कुछ सूत्रों को आपके लिए लेकर आए हैं आप इन सूत्रों का प्रयोग करके देखें अवश्य ही आपको मनचाही संतान की प्राप्ति होगी दोस्तों इस में जो सूत्र दिए गए हैं उसमें पुत्र ही नहीं बल्कि अगर आप पुत्री संतान के रूप में चाह रहे हो तो भी आप पुत्री को प्राप्त कर सकते हैं.
पुत्री की प्राप्ति कैसे हो इसके लिए हम इसके बाद दूसरा POST बनाएंगे इस POST में हम आपको सिर्फ और सिर्फ पुत्र प्राप्ति के संबंध में ही बताने जा रहे हैं चर्चा करते हैं.
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दोस्तों हमारा मानना है कि जो हमारे ऋषि मुनि हुआ करते थे वहां एक प्रकार से प्राचीन समय में वैज्ञानिक हुआ करते हैं यह ऋषि मुनि ही नई नई रिसर्च किया करते थे और उनका संकलन भी अपनी पुस्तकों के द्वारा करते थे. इन्हें भी पढ़ें : पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए तीन आयुर्वेदिक उपाय उपाय #2
ऐसे ही हम आज पांच प्राचीन विज्ञानियों के द्वारा पुत्र प्राप्ति के जो सूत्र दिए गए हैं उनके विषय में आपको बताने जा रहे हैं.
दोस्तो इन्हीं सूत्रों का प्रयोग करके महर्षि व्यास ने अपनी तीन पत्नियों के द्वारा समागम करके 3 पुत्र धृतराष्ट्र, पांडू और विदुर को जन्म दिया था जिसका वर्णन महर्षि दयानंद ने अपनी पुस्तक “संस्कार विधि” में विस्तार से किया है.
आइए दोस्तों प्राचीन पुस्तकों में जो सूत्र दिए गए हैं उनके विषय में आपको बता देते हैं.
चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है.
हमारे दाहिने और बाएं नासिका स्वर को सूर्य स्वर और चंद्र स्वर के नाम से भी जाना जाता है.
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गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के क्रमशः दायां-बायां श्वास स्वर चल रहे हो तो पुत्र प्राप्ति होती है.
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यही बात एक प्राचीन संस्कृत की पुस्तक सर्वोदय में भी वर्णित है.
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र की प्राप्ति होती है,
सप्ताह में मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं, अगर इन दिनों गर्भ ठहरता है तो पुत्र प्राप्ति की संभावना बहुत ज्यादा होती है, बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं. अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए.
यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का का जन्म होता है.
2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में भगवान अत्रि कुमार के अनुसार पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है। कहीं ना कहीं इसका अर्थ यही निकलता है कि अगर महिला पहले चरमोत्कर्ष पर पहुंचती है तो पुत्र प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है.
दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र लेता है.
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