प्राचीन भारतीय संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार Garbh Sanskar दिव्य संतान प्राप्ति का एक तरीका है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार या आधुनिक मेडिकल साइंसेज की मान्यता के अनुसार, गर्भस्थ शिशु माता के गर्भ में 3 महीने की उम्र से ही शिक्षा ग्रहण करना शुरू कर देता है.
तो यहां पर स्पष्ट है, कि माता के शरीर में 6 महीने शिशु बहुत कुछ सीखता है. जब शिशु माता के गर्भ में सीख रहा है तो फिर उसे वह सब सीखना चाहिए, जो आवश्यक है. इसे ही Garbh Sanskar के रूप में वर्णित किया जाता है.
Garbh Sanskar से दिव्य संतान
गर्भ संस्कार किसी भी गर्भस्थ माता के लिए एक तेजस्वी शिशु की माता होने का गर्व प्रदान कर सकता है. किसी भी गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास काफी हद तक गर्भवती स्त्री की भावनाएं, महिला के विचार, आहार और वातावरण पर काफी हद तक निर्भर करता है. यह ऐसी बात है, जिसे आजकल कोई भी सीरियस नहीं लेता है.
न्यूरो वैज्ञानिकों के अनुसार यदि कोई गर्भवती स्त्री आधे घंटे तक गुस्सा करती है, विलाप करती है. तो उस दौरान उसके गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क का विकास पूर्ण रूप से रुक जाता है. अगर महिला लगातार ऐसा करती है, तो गर्भ में शिशु कम बौद्धिक क्षमता के साथ पैदा होता है.
क्योंकि किसी भी गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क न्यूरो सेल्स के साथ बना होता है. न्यूरो सेल्स की अधिक मात्रा अर्थात शिशु का बौद्धिक विकास अधिक होना माना जाता है.
ऐसे ही गर्भस्थ शिशु का हर प्रकार का विकास, चाहे मस्तिष्क से संबंधित हो, चाहे शारीरिक विकास हो, वह महिला की गतिविधियों से हमेशा जुड़ा हुआ होता है. और गलत गतिविधियां बच्चे के विकास को बाधित करती हैं. Garbh Sanskar हमेशा सही गतिविधियों की ओर आपको लेकर जाता है.
ऐसे ही बहुत सारी छोटी-छोटी काम की बातों के लिए महिला को Garbh Sanskar के नियमों का पालन करना चाहिए.
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Garbh Sanskar का अर्थ
गर्भसंस्कार का अर्थ है, गर्भधारणा से लेकर प्रसूति तक के 280 दिनों में घटने वाली हर घटना, गर्भवती के विचार, उसकी मनोदशा, गर्भस्थ शिशु से उसका संवाद, सुख, दुःख, डर, संघर्ष, विलाप, भोजन, दवाएं, ज्ञान, अज्ञान तथा धर्म और अधर्म जैसे सभी विचार आने वाले शिशु की मानसिकता पर छाए रहते हैं.
अमेरिका के एक अन्य वैज्ञानिक चिकित्सक डॉ. पीटर नाथांजिल अपने अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं, कि गर्भावस्था के दौरान आहार में परिवर्तन, आहार की कमी, गलत आहार से गर्भस्थ शिशु को कई बीमारियां मिल जाती हैं. शिशु के भावी जीवन में स्वास्थ्य संबंधी क्या तकलीफें हो सकती हैं, उसकी नींव गर्भावस्था के दौरान ही पड़ जाती है.
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कौन सी सामान्य बातों का महिला ध्यान रखें
माता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए, कि उसके गर्भ में शिशु का मस्तिष्क महिला के मस्तिष्क से सीधा जुड़ा हुआ होता है. इसलिए महिला को अपनी भावनाओं पर काफी कार्य करने की आवश्यकता है. पॉजिटिव सोचे. अर्थपूर्ण सोचे, बच्चे से अगर बात करें तो अर्थ पूर्ण बातें करें.
गर्भस्थ शिशु को भले ही भाषा का ज्ञान नहीं होता है, लेकिन वह भावनाओं को बहुत अच्छी तरह समझ सकता है. इसलिए इस बात का ध्यान रखें.
बच्चे के स्वास्थ्य और मस्तिष्क के विकास से संबंधित पोषक तत्व महिला की भोजन में अवश्य होनी चाहिए. अगर महिला को इस बात की जानकारी नहीं है, तो वह डॉक्टर से इस संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकती है, लेकिन भोजन पर ध्यान दें.
गर्भस्थ माता गर्भ संस्कार कैसे करें
गर्भ संस्कार अपने आप में एक पूरा विज्ञान है. इसके अंदर धार्मिक, आध्यात्मिक, आयुर्वेदिक, स्वास्थ्य, मनोवैज्ञानिक, भोजन विज्ञान इत्यादि का समावेश होता है. इसमें कई प्रकार के एक्सपर्ट लोगों की आवश्यकता होती है.
गर्भ संस्कार का चलन भारतीय समाज से विलुप्त हो गया था. लेकिन आधुनिक विज्ञान के रूप में यह दोबारा से वापस आ रहा है. वर्तमान में इसके प्रोफेशनल आसानी से उपलब्ध नहीं है.
कोई भी ब्राह्मण धर्म के अनुसार घर में गर्भ संस्कार पूजा पाठ करता है.
एक मनोवैज्ञानिक अपने अनुसार गर्भ संस्कार को फॉलो करता है.
एक डॉक्टर आपके स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से गर्भ संस्कार को फॉलो करता है.
अगर आपके पास गर्भ संस्कार से संबंधित कोई एक्सपर्ट उपलब्ध है तो आप उनसे राय लेकर गर्भ संस्कार की क्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं.
अन्यथा इसका एक काफी आसान उपाय यह भी है कि कई सारे एक्सपर्ट द्वारा गर्भ संस्कार की विधि को उस में किए जाने वाले कार्य को संकलित करके पुस्तक का रूप दे दिया गया है.
जिन पुस्तकों को आप अपनी भाषा में किसी भी बुक स्टोर से खरीद सकते हैं.
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