प्राचीन समय से ही मान्यता है, कि जिस भी शिशु की उत्पत्ति में गर्भ संस्कार के नियमों का पालन किया जाता है, वह संतान अति उत्तम होती है. वह शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से स्वस्थ और अधिक एक्टिव रहती है. किसी भी चीज को समझने की उसकी क्षमता भी अद्भुत मानी जाती है. आज हम बात कर रहे हैं गर्भ में बच्चे को संस्कार कैसे दें.
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गर्भ संस्कार के कार्यों का आधार
सनातन एक वैज्ञानिक धर्म है. सनातन धर्म का मुख्य आधार एनर्जी है. वह एनर्जी जो हमारे मन और मस्तिष्क के द्वारा पैदा होती है. हमारे कार्यों के द्वारा पैदा होती है. हमारे आसपास स्थित वस्तु में जो एनर्जी होती है. इस एनर्जी को विकास का आधार माना जाता है.
कोई भी पॉजिटिव एनर्जी पॉजिटिव एक्टिविटी की ओर ले कर जाती है, और नेगेटिव एनर्जी नेगेटिव एक्टिविटी और कार्यों की ओर ले कर जाती है.
कोई भी एनर्जी जो हमें फायदा पहुंचाती है, वह पॉजिटिव एनर्जी कहलाती है, जो एनर्जी हमें नुकसान पहुंचाती है. उसे नेगेटिव एनर्जी माना जाता है.
वैसे कोई भी एनर्जी पॉजिटिव या नेगेटिव नहीं होती है. वह किसी भी व्यक्ति के आवश्यकताओं के आधार पर उसके लिए पॉजिटिव या नेगेटिव हो सकती है.
जैसे कि कोई चाकू अगर आपके लिए फल काटता है, तो वह फायदे की चीज होती है. अगर वह चाकू आपके शरीर में लग जाता है, तो वह ही नुकसानदायक हो जाता है.
आधुनिक विज्ञान भी मानता है, कि हम सभी एनर्जी से ही निर्मित हैं. एनर्जी से द्रव्यमान बना है. और द्रव्यमान से यह धरती का विकास हुआ है. जो भी वस्तु हम देखते हैं, वह बहुत ज्यादा एनर्जी से निर्मित है. इसलिए एनर्जी का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर तत्काल पड़ता है.
गर्भ में शिशु को संस्कार कैसे मिलते हैं
गर्भस्थ शिशु बिल्कुल भी बोल नहीं सकता है. उसके किसी भी चीज को समझने की शक्ति ना के बराबर होती है. लेकिन शिशु का मस्तिष्क महसूस अवश्य कर सकता है. वह अपने चारों तरफ उत्पन्न होने वाली एनर्जी को महसूस करता है.
हमारी सोच से, हमारी समझ से, हमारे कार्य से, हमारे वातावरण से हमेशा एक एनर्जी उत्पन्न होती है.
यह वही एनर्जी है जिसकी सहायता से माता और संतान की एक मजबूत अंडरस्टैंडिंग बनती है. एक बाउंडिंग बनती है. गर्भस्थ शिशु हमेशा अपनी माता के हर एहसास को समझता है. उसके साथ जो भी कुछ अच्छा या गलत होता है. जैसा भी माता के मन में विचार चल रहे होते हैं. उन विचारों की एनर्जी को शिशु समझता है, और उसी प्रकार से वह शिक्षा ग्रहण करता है.
जब गर्भस्थ शिशु माता के गर्भ में, हमारे आस पास के वातावरण से, माता की परिस्थितियों से सीखता है. उसे वह सब चीजें सिखानी चाहिए, जो उसके लिए अत्यधिक आवश्यक है. शिशु को फिर ऐसी चीजें सिखाएं जो जन्म के बाद उसे सहायता करें. उसके जीवन को एक अच्छी गति प्रदान करें.
एक अच्छा इंसान बनने के लिए जो भी गुण एक इंसान के अंदर होने चाहिए. उन्हें संस्कार कहा जाता है. और इन संस्कारों को गर्भ संस्कार के माध्यम से धीरे-धीरे डिवेलप किया जाता है.
गर्भ में शिशु का विकास हो रहा होता है और वह और गर्भस्थ शिशु का 50% मस्तिष्क गर्भ काल में ही विकसित हो जाता है.
गर्भकाल के दौरान शिशु माता से ही सीखता है. इसलिए माता के जैसे आचार विचार होंगे, जैसी सोच होगी, जैसी समझ होगी, माता के आसपास जैसा वातावरण होगा, उसी का प्रभाव शिशु पर पड़ता है. इसलिए कहा जाता है माता को गर्भ संस्कार के नियमों का पालन करना चाहिए.
गर्भस्थ माता गर्भ संस्कार कैसे करें
गर्भ संस्कार इतना आवश्यक है, यह आपको स्पष्ट हो गया होगा. अगर मन में यह बात आती है, कि गर्भ संस्कार को मैं कैसे जीवन में उतारू, ताकि गर्भस्थ शिशु को लाभ मिल सके.
इसके लिए कुछ तरीके हैं. सबसे पहले आप अपने पास गर्भ संस्कार एक्सपर्ट को सर्च कर सकते हैं. उस के सानिध्य में आप अपनी प्रेगनेंसी को आगे बढ़ा सकती हैं.
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