प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए

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प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए

प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए. इस बात की जानकारी एक गर्भवती महिला को अवश्य होनी चाहिए.

अगर गर्भवती महिला का वजन प्रेगनेंसी के दौरान जितना होना चाहिए. उतना नहीं है, तो उससे किस प्रकार की समस्याएं प्रेगनेंसी के दौरान आ सकती हैं.

अक्सर हमारे पास प्रश्न आता है कि हम गर्भवती हैं और हम जानना चाह रहे हैं कि हमारा कितना वजन होना चाहिए.

 जैसे कि प्रेगनेंसी के पहले महीने या दूसरे महीने या तीसरे महीने में कितना वजन होना चाहिए. या आगे के कुछ महीनों में महिला का वजन कितना होना चाहिए. उनकी बातों से नजर आता है कि वह एक निश्चित अंक जानना चाहते हैं कि वजन कितने किलो होना चाहिए.

प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए

किसी भी गर्भवती महिला का प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए, इसका कोई भी फार्मूला अभी तक निकल कर नहीं आया है क्योंकि आपका वजन कई सारे फैक्टर्स पर निर्भर करता है.
जैसे कि —-

आपके शरीर की प्रकृति कैसी है.

आपके भोजन की प्रकृति कैसी है. अर्थात आप किस प्रकार का भोजन अब तक लेते चले आए हैं. और प्रेगनेंसी में किस प्रकार का भोजन ले रहे हैं. उसके अंदर पोषक तत्व की क्या मात्रा है.

महिला का वजन इस बात पर भी निर्भर करता है कि महिला की लंबाई कितनी है.

अगर प्रेगनेंसी के समय महिला का वजन 45 किलो है तो इसे अंडरवेट समझा जाता है महिला का वजन 45 किलो से ऊपर ही होना चाहिए.

अगर एक महिला की लंबाई 155 सेंटीमीटर है तो प्रेगनेंसी के लिए उसका आदर्श वजन आप 55 किलो मान सकते हैं.

प्रेगनेंसी के शुरुआती 3 महीनों में महिला का वजन हल्का फुल्का ही बढ़ता है. इसे बहुत ज्यादा ध्यान रखने पर ही काउंट किया जा सकता है. लगभग 1 किलो महिला का वजन बढ़ जाता है. लेकिन महिला का भोजन ही दिन भर में इतना होता है कि आधा किलो वजन ऊपर नीचे एक दिन में ही आप काउंट कर सकते हैं.
शुरू के 3 महीने में गर्भस्थ शिशु का वजन 100 ग्राम से काफी कम होता है.

3 महीने के बाद महिला का वजन प्रॉपर तरीके से बनना शुरू हो जाता है जिसे आप महसूस कर सकती हैं.
प्रेग्नेंसी के सातवें महीने तक करीब 8 – 9 किलो वेट अवश्य गेन कर सके, और आखिरी के 8 सप्ताह यानि 8वें और नौवें महीने में कुल 10 – 12 किलोग्राम वजन का बढ़ना गर्भवती के लिए जरूरी होता.

जहां तक संभव हो इस दौरान हर गर्भवती स्त्री को अपने खानपान का विशेष ख्याल रखना चाहिए. गर्भकाल में मां का कुल 10 – 12 किलोग्राम तक वजन जरूर बढ़ जाना है. अंतिम 3 महीने में वजन तेजी से बढ़ सकता है जो कि नॉर्मल हैं.

प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए

अंडर वेट होने के नुकसान

अगर गर्भवती महिला अंडरवेट है तो इसका नुकसान माता और गर्भस्थ शिशु दोनों को ही होता है.

गर्भवती महिला को नुकसान

  • अगर महिला प्रेगनेंसी के दौरान अंडरवेट है तो आगे चलकर महिला के शरीर में ब्रेस्ट फीडिंग सप्लाई कम हो सकती है, और महिला को इस समस्या को दूर करने के लिए सप्लीमेंट का सहारा लेना पड़ सकता है.
  • अगर आपका वजन कम है तो शरीर के अंदर फोलेट और आयरन जैसे पोषक तत्वों की कमी हो सकती है. इनकी कमी से मिसकैरेज की संभावना बन जाती है.
  • कम वजन वाली महिलाओं को डिलीवरी के समय भी कॉम्प्लिकेशंस होने का खतरा रहता है, और उनकी डिलीवरी समय से पहले होने की संभावना बनी रहती है.
  • कम वजन वाली महिलाओं के साथ सिजेरियन डिलीवरी का खतरा भी अधिक रहता है.
  • आगे चलकर महिलाओं को ओस्टियोपोरोसिस और एनीमिया जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.
     प्रेगनेंसी डिलीवरी के बाद भी महिला के शरीर में पोषक तत्वों की कमी बनी रहती है और कई प्रकार की समस्याएं शरीर में उत्पन्न हो सकती हैं.
  • अंडरवेट महिलाओं को प्रसव के बाद रक्त शराब की समस्या का सामना करना पड़ सकता है और कमजोर शरीर के कारण महिला की कभी-कभी मृत्यु तक हो जाती है.

मल्टीविटामिन(s)

4.3

शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है उसकी पूर्ति के लिए आप मल्टीविटामिंस का प्रयोग कर सकते हैं. यह महिलाओं की ऊर्जा फ्लैक्सिबिलिटी और मजबूती को वापस लाएगा.

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गर्भस्थ शिशु को नुकसान

प्रेगनेंसी में कितना वजन होना चाहिए, यह पता होना एक गर्भस्थ शिशु के लिए भी बहुत आवश्यक है वजन कम होने के नुकसान गर्भस्थ शिशु को भी होते हैं जो इस प्रकार से हैं.

  • गर्भस्थ शिशु को सही पोषण प्राप्त नहीं होने की वजह से लो बर्थ वेट की समस्या नजर आ सकती है. जन्म के समय बच्चे का वजन कम रह सकता है.
  •  बच्चे की इम्युनिटी पावर कम रह जाती है, और बच्चे को संक्रमण होने का खतरा अधिक रहता है.
  •  महिला का वजन कम है तो गर्भ शिशु को जन्मजात कॉम्प्लिकेशंस रहने का खतरा बन जाता है.
  •  आपके बच्चे का वजन कम है, तो आगे चलकर हाइपोथर्मिया लो ब्लड शुगर की समस्या बच्चे के अंदर पैदा हो जाती है,
  • जन्म के बाद बच्चे को डायबिटीज या हार्ड प्रॉब्लम जैसी समस्याओं की संभावना अधिक रहे.
  • बच्चे की इंद्रियों का विकास ठीक ढंग से नहीं होता है. बच्चे को देखने, सुनने या बोलने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है और भी दूसरी ग्रंथियों में कमी रह सकती है.

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