सनातन धर्म के अंदर श्री कृष्ण मंत्र से आराधना का विशेष महत्व होता है, और हम श्री कृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष बड़ी धूमधाम से भी मनाते हैं. कान्हा जी का लड्डू गोपाल स्वरूप संतान प्राप्ति के लिए भी पूजा जाता है. आज हम पुत्र प्राप्ति हेतु कृष्ण मंत्र के विषय में चर्चा कर रहे हैं.
श्री कृष्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण देवता माने गए हैं. सनातन के अंदर इन का विशेष महत्व है.
क्या मंत्र शक्ति कार्य करती है
विज्ञान भी मानता है कि अगर आप अपनी मानसिक और आत्मिक शक्ति को अत्यधिक बढ़ा लेते हैं, तो आप जो चाहते हैं, वह आप प्राप्त कर सकते हैं. चाहे इसके साधन आपके पास हो या नहीं हो.
कई बार ऐसे व्यक्तियों के बारे में भी सुनने को मिलता है जिनका एक्सीडेंट हो जाता है और मेडिकल के अनुसार अब वह कभी नहीं चल सकते हैं लेकिन वह अपनी आत्मिक और मानसिक ऊर्जा के बल पर और अपने विश्वास पर लाइलाज बीमारियों से और एक्सीडेंट से उभर जाते हैं और स्वस्थ हो जाते हैं. उनका शरीर अप्रत्याशित रूप से स्वस्थ हो जाता है, और शरीर की कमियों को शरीर स्वयं दूर कर लेता है.
ऐसे ही अगर किसी महिला के शरीर में संतान प्राप्ति की क्षमता नहीं है या उनके प्रजनन तंत्र में कुछ समस्या है तो वह अपनी आत्मिक और मानसिक शक्ति के बल पर अपने शरीर की ऊर्जा को बढ़ाकर उस समस्या का निदान प्राप्त कर सकती हैं. ऐसे में आपकी उर्जा को बढ़ाने के लिए विशेष मंत्र काफी प्रभावशाली होते हैं.
यहां आपको अपने इष्ट पर विश्वास और मंत्र साधना पर पूर्ण रूप से विश्वास करना अत्यधिक आवश्यक है, और यह विश्वास करना भी आवश्यक है, कि अपने इष्ट के इस मंत्र की ऊर्जा से मेरे गर्भ में संतान की प्राप्ति जरूर होगी.
संतान प्राप्ति हेतु संतान गोपाल मंत्र
संतान प्राप्ति हेतु संतान गोपाल मंत्र भी अत्यंत लाभदायक माना जाता है.
विनियोग
अस्य गोपाल मंत्रस्य, नारद ऋषि:, अनुष्टुप छंद:, कृष्णो देवता, मम पुत्र कामनार्थ जपे विनियोग:
ध्यान
विजयेन युतो रथस्थित: प्रसभानीय समुद्र मध्यत:।
प्रददत्त नयान् द्विजन्मने स्मरणीयो वसुदेव नंदन:।।
संतान गोपाल मंत्र
ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते ।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
संतान गोपाल मंत्र द्वारा संतान प्राप्ति के लिए इसका विधि विधान से पाठ करना आवश्यक है. किसी भी मंत्र के विधि विधान के लिए कोई भी निश्चित तरीका नहीं होता है. भारत के अंदर अनेक प्रदेशों में एक ही प्रकार की पूजा साधना के लिए अलग-अलग नियम होते हैं.
आपके क्षेत्र में जिस भी प्रकार से पूजा पाठ की जाती है. यह आप अपने ब्राह्मण से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, और उसी तरीके से संतान गोपाल मंत्र का पाठ करें.
क्योंकि ब्राह्मण के सानिध्य में पाठ करना श्रेष्ठ रहता है. पूजा साधना में आपका अपने इष्ट पर विश्वास और श्रद्धा यह सबसे अधिक मायने रखती है.
संतान गोपाल मंत्र का जाप श्री जन्म कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ मुहूर्त से शुरू कर सकते हैं, या आप किसी अन्य शुभ मुहूर्त से इस पाठ को प्रारंभ कर सकते हैं, मंत्र जाप शुरू कर सकते हैं. शुभ मुहूर्त की जानकारी आपको आपके ब्राह्मण से मिल जाएगी.
मनोकामना या संतान प्राप्ति हेतु श्री कृष्ण के अन्य मंत्र
श्री कृष्ण भगवान विष्णु का स्वरूप है, और यह पालनहार माने जाते हैं. इसलिए जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी कार्य बंधन के इष्ट देवता भगवान श्री कृष्ण अर्थात भगवान विष्णु है.
जीवन यापन संबंधी मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान श्री कृष्ण के दो मंत्रों की चर्चा हम यहां कर रहे हैं. यह आपकी मनोकामना पूर्ति मंत्र है, लेकिन अगर मनोकामना में आप संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, तो यह एक प्रकार से संतान प्राप्ति के लिए भी कार्य करेंगे.
द्बादशाक्षरी श्री कृष्ण जप मंत्र-
ऊॅँ नमो भगवते वासुदेवाय।।
अष्ट दशाक्षर श्री कृष्ण मंत्र-
क्लीं कृष्णाय गोविंदाय,
गोपींजन वल्लभाय स्वाहा
लड्डू गोपाल जी का लालन-पालन
लड्डू गोपाल जी का लालन-पालन घर में एक पुत्र के समान करना चाहिए.
इस प्रकार से अगर आप उन्हें पुत्र मानकर, पुत्र की भांति उनका पालन पोषण करेंगे और उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा रखेंगे तो आपके यहां संतान की प्राप्ति अवश्य होगी. यह सबसे आसान और सुलभ तरीका माना जाता है.
साथ ही साथ कान्हा जैसी सुंदर संतान के लिए इस मंत्र का उच्चारण करें-
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच।।
कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें
पहला पूजा पाठ करने के बहुत सारे नियम होते हैं. इसलिए किसी भी साधना को प्रारंभ करने से पहले किसी ज्ञानी ब्राह्मण से उसकी विधि विधान के विषय में अवश्य जानकारी प्राप्त करें. विधि विधान से या नियमानुसार किसी भी कार्य को करने से उस कार्य की एनर्जी अत्यधिक बढ़ जाती है. उस कार्य के परिणाम अच्छे आने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है.
अगर आप पूजा पाठ विधि विधान से करते हैं, तो मंत्रों की शक्ति सामान्य तरीके से पूजा पाठ करने की तुलना में अधिक आपको महसूस होगी.
दूसरा आप संकल्प करके ही मंत्रों का जाप करें. इस अवस्था में मंत्र जाप का अधिकतम लाभ मिलता है.
तीसरा संकल्प कैसे किया जाता है. संकल्प करना भी अपने आप में एक विधि है. इस विधि को हर ब्राह्मण बहुत अच्छी तरीके से जानते हैं. एक निपुण व्यक्ति किस प्रकार से संकल्प लेता है और एक सामान्य व्यक्ति को संकल्प किस प्रकार से लेना चाहिए. इसमें भी भेद होता है. इसलिए किसी भी साधना को करने से पहले संकल्प अवश्य लें.
संकल्प कैसे लेना है इस विषय में ज्ञानी ब्राह्मण से अवश्य पता करें.
चौथा हर मंत्र की अपनी एक एनर्जी होती है, अगर माला की एनर्जी मंत्रों की एनर्जी के सम होगी अर्थात उसके साथ समाहित होने की क्षमता रखती है, तो साधना और अधिक फलीभूत होती है. इसलिए हर देवता के मंत्रों के लिए अलग-अलग प्रकार की माला का प्रावधान है. जैसे कि चंदन की लकड़ी की माला, रुद्राक्ष की माला इत्यादि. कोई भी ब्राह्मण देवता आपको इस संबंध में सही जानकारी अवश्य प्रदान करेंगे. जैसे कि भगवान शिव के मंत्रों का जाप रुद्राक्ष की माला से करना सर्वोत्तम रहता है.
पांचवा अगर आपके पास किसी ज्ञानी ब्राह्मण का सानिध्य प्राप्त है तो आप उनसे अपनी माला को सिद्ध करवा सकते हैं. सिद्ध करवाने का अर्थ यहां पर उसकी उसमें उपस्थित दानों की एनर्जी को बढ़ाने से होता है. सिद्ध माला का प्रयोग करने से मंत्र शक्ति और बढ़ जाती है. जो आपकी एनर्जी को और बढ़ा देती है. आपकी औरा आप और अधिक मजबूत होगी. मजबूत औरावाले व्यक्ति का शरीर अधिक स्वस्थ रहता है.
छठवां मंत्र जाप करने का भी नियम होता है. माला को किस प्रकार से पकड़ना है. किस प्रकार से 108 मंत्र पूरा होने के बाद दोबारा से माला कैसे पकड़कर मंत्र शुरू करने हैं. इसका भी विज्ञान है. यह भी आप किसी ज्ञानी ब्राह्मण से अवश्य पता करें.
सातवां अगर महिला या पुरुष जो भी मंत्र जाप कर रहे हैं उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि वह अपने मन को पॉजिटिव रखें. मन पॉजिटिव अर्थात एनर्जी पॉजिटिव. लड़ाई, झगड़ा, द्वेष भावना, कलह इत्यादि से विशेष रूप से बचकर रहें. अपनी एनर्जी को नेगेटिव नहीं होने दे. खुश रहे तनाव से मुक्त रहें.
आठवां मंत्र जाप खुशी से करें. इसे कार्य समझकर नहीं करें. यह भावना मन में बिल्कुल नहीं आनी चाहिए कि यह कार्य कब समाप्त होगा. रोजाना इतना समय लगता है. कैसे होंगे. यह एक प्रकार से नेगेटिव एनर्जी है, जो आपके कार्य को प्रभावित करती है. विश्वास, आस्था और मन और खुशी यह सब जरूरी है.
नौवां आपको अपने भोजन का भी विशेष ध्यान रखना है. आपको अपनी दिनचर्या का भी विशेष ध्यान रखना है. हल्का सुपाच्य शुद्ध शाकाहारी भोजन करें. शरीर में विकार उत्पन्न नहीं होना चाहिए.
दशवां सुबह सूर्य उदय से पहले उठे स्नान नित्य कर्म से निवृत्त होकर अगले कार्य में लगे शाम को भी समय से सोए यह भी आपके शरीर की एनर्जी को दुरुस्त और मजबूत बनाए रखता है यह कार्य भी पूजा साधना के साथ-साथ जरूरी है जिन्हें हम शुद्ध रूप से भूल जाते हैं.
NOTE : आप इन 10 कार्य को नहीं भी करें तब भी आप अपनी पूजा साधना कर सकते हैं और उसका फल आपको प्राप्त हो सकता है लेकिन इन 10 कार्यों को अपनाने के बाद और इन कार्यों को नहीं अपनाने के बाद कार्य में अंतर उतना ही होता है जितना एक सामान्य व्यक्ति द्वारा एक मकान बनाना और एक इंजीनियर एक्सपर्ट व्यक्ति द्वारा एक मकान बनाना दोनों में जो अंतर होता है वही अंतर आपकी साधना में नजर आएगा.