पैदा होने वाले बच्चे का रंग किन बातों पर निर्भर करता है

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हर माता-पिता की इच्छा होती है, कि उसका बच्चा सुंदर होना चाहिए.  भारतीय माता-पिता की इच्छा यह होती है कि उनका बच्चा गोरे रंग का होना चाहिए आज हम अपने इस वीडियो के माध्यम से चर्चा करने जा रहे हैं कि बच्चे का रंग किन किन बातों पर निर्भर करता है.

किसी भी इंसान का रंग उसकी त्वचा में स्थित मेलेनिन रंग द्रव्य पर निर्भर करता है और यह मेलेनिन कई प्रकार के केमिकल्स द्वारा शरीर के अंदर नियंत्रित किया जाता है. त्वचा को पराबैंगनी अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा के लिए यह शरीर के अंदर बनता है.

इतिहास के पन्नों से इसे समझ सकते हैं. माना जाता है, कि इंसान की शुरुआत अफ्रीका से हुई है अफ्रीका में गर्मी बहुत ज्यादा पड़ती है. और वहां का भौगोलिक स्तर ऐसा है कि सूर्य का सीधा प्रकाश उस धरती पर पड़ता है. सूर्य के अंदर अल्ट्रावायलेट किरणें होती हैं. यह किरणें हमारे शरीर को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं और हमारी त्वचा सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती है. हमारे शरीर की एक खास बात होती है, कि यह अपने आप को परिस्थिति में ढाल लेता है.

पैदा होने वाले बच्चे का रंग किन बातों पर निर्भर करता है

हमारे शरीर में अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव के लिए शरीर ने मेलेनिन नाम का रंग द्रव्य उत्पन्न किया.

यह रंग द्रव्य हमारे शरीर को अल्ट्रावायलेट किरणों के नुकसान से बचाता है. व्यक्ति जितना अधिक अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में रहता है. हमारी त्वचा में यह रंग द्रव्य उतना अधिक होता है और व्यक्ति का रंग उतना ज्यादा डार्क होता है.

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अब बात करते हैं भारत की

भारत में दो तरह के स्थान है एक है मैदानी स्थान और एक है पर्वतीय
स्थान मैदानी स्थानों पर सूरज की किरणें सीधी पड़ती है, लेकिन इतनी सीधी नहीं पड़ती है. जितनी सीधी अफ्रीकन क्षेत्र में पड़ती हैं, तो भारतीय मैदानी क्षेत्रों के लोग अपेक्षाकृत कम डार्क त्वचा वाले होते हैं. अफ्रीकन अधिक डार्क त्वचा वाले होते हैं.

पर्वतीय क्षेत्रों पर किरण तिरछी पड़ने पर पर अल्ट्रावायलेट किरणें और कम पहुंचती है, और इस कारण पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग और ज्यादा साफ रंग के होते हैं.

यहां पर एक बात बहुत जरूरी है कि व्यक्ति के आचार, विचार, सोच, समझ , इन्वायरमेंट की में रहने की क्षमता और बहुत सी दूसरी बातों की एक एक कॉपी हमारे डीएनए में स्थापित होती रहती है.

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जिसे हम जींस भी कहते हैं. और यही जींस माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर होते हैं.  इस जींस के अंदर बच्चे की त्वचा की डेफिनिशन भी होती है. अर्थात परिभाषा होती है कि बच्चे की जो त्वचा है उसकी प्रकृति कैसी होगी.

तो हम खानपान से या किसी भी प्रकार से बच्चे की त्वचा की जो प्रकृति है वह बदल तो नहीं सकते लेकिन थोड़ा बहुत उसमें परिवर्तन आ सकता है, जो हमारे भोजन के माध्यम से संभव है.

एक छोटी सी केस स्टडी है
दो भाई होते हैं. दोनों भाइयों का रंग एक जैसा है उनकी पत्नियां हैं उनका भी रंग एक जैसा है एक भाई खेती करता है और एक भाई मल्टीनेशनल कंपनी में कार्य करता है. हमेशा एयर कंडीशनर वातावरण में रहता है. सूर्य के संपर्क में कम आता है, तो जो भाई खेती करता है. उसकी पत्नी भी खेती करती है. जब उनके यहां बच्चा उत्पन्न होगा तो उसका रंग दूसरे भाई के बच्चे के रंग से थोड़ा सा दबा हुआ होगा डार्क होगा . इसकी संभावना काफी ज्यादा रहती है.

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