कहानी : मुंह से कुछ ऐसा निकला कि “मैं शर्म से लाल हो गई”

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आज हम आपको मीरा जी के जीवन में घटित एक घटना शेयर कर रहे हैं, जो उन्होंने हमें शेयर की है.  यह हाय मैं शर्म से लाल हो गई श्रंखला के अंतर्गत हम इसे प्रकाशित कर रहे हैं. 

मीरा जी के अनुसार इस घटना के बाद से उन्होंने बहुत सोच समझकर बोलना शुरू किया था.

मीरा की आदत बचपन से ऐसी थी कि वह कुछ भी बिना सोचे समझे बोल देती थी. हालांकि मीरा का मानना था, कि वह सही बात करती है. 

लेकिन उसके घर वालों का मानना था, कि वह बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती है. और यह भी बात उतनी ही सत्य है, कि कभी-कभी सही बात भी नहीं बोलनी चाहिए.

मीरा के पिता जी अपने शहर से दूर किसी दूसरे शहर में नौकरी किया करते थे.  दूसरे शहर का होने की वजह से वह अपने पड़ोसी नागर जी से अच्छे संबंध रखा करते थे. क्योंकि नागर जी उसी क्षेत्र के रहने वाले थे. 

मीरा के अनुसार उनके पिताजी का मानना था, कि वक्त आने पर लोकल व्यक्ति काफी काम आता है. इसी वजह से वह नागर जी से काफी आत्मीयता रखते थे, और उनकी बातें मानते भी थे.

धीरे-धीरे नागर जी को इस बात का एहसास हो गया, कि मीरा के पिताजी की सोच क्या है.

मुंह से कुछ ऐसा निकला कि  "मैं शर्म से लाल हो गई"

 

 शुरू शुरू में अक्सर नागर जी को मीरा के पिता जी चाय पर बुला लिया करते थे. अब नागर जी को जब मीरा के पिता जी की इस कमजोरी का पता चला तो, अब उन्होंने उसका फायदा उठाना शुरू कर दिया था.

 वह बात बात पर बिना वजह मात्र चाय पीने के उद्देश्य से और नाश्ता करने के उद्देश्य से मीरा के घर आने लगे थे.

अब घर में चाय बन रही है, कोई आ जाए तो कोई समस्या नहीं होती है. लेकिन कोई टाइम वे टाइम चाय पीने आए तो अक्सर मीरा को ही चाय बनानी पड़ती थी.

 मीरा नागर जी की इस आदत से मेरा काफी परेशान थी. क्योंकि वह मीरा के पिताजी की एक कमजोरी का फायदा जानबूझकर उठा रहे थे. 

1 दिन नागर जी मीरा के यहां आए और मीरा के पिताजी पर एहसान दिखाते हुए बोले, वह सिर्फ आपका हाल-चाल जानने के लिए यहां आए हैं. वैसे उन्हें बहुत जरूरी काम से मिश्रा जी के पास जाना था. 

इस पर तपाक से मीरा ने कहा मिश्रा जी के यहां आपको चाय नहीं मिलती अंकल जी.  आप रोज 4:00 बजे आया कीजिए ना इस वक्त हम रोजाना चाय बनाते हैं.

मीरा की इस बात को सुनकर नागर जी का चेहरा ऐसा हो गया जैसे चोरी पकड़ ली हो. मीरा 12 -13 वर्ष की एक बालिका की तो बात संभल गई. 

इसके बाद नागर जी का आना थोड़ा सा कम हो गया था, लेकिन मीरा को इस बात के लिए माता-पिता ने काफी सुनाया और कहां बिना सोचे समझे नहीं बोलना चाहिए. आपके द्वारा कहे गए शब्दों के बहुत सारे मतलब होते हैं. 

 कभी-कभी सही बात भी बोलना गलत होता है. ऐसे ही बहुत सारी ऐसी घटनाएं मेरा के जीवन में थी.
मीरा की शादी हो गई शादी के बाद मेरा अपने ससुराल संभल गढ़ आ गई.

मीरा जी बताती हैं, शादी के दो-तीन साल बाद एक ऐसी घटना घटी, जिसे याद करते ही आज भी शर्म आ जाती है.

2 दिन रात भर बारिश हुई और 2 दिन के बाद  धूप अच्छी निकली थी. इसलिए काफी सारे कपड़े मीरा ने धो दिए. वह 2 से 3 घंटे में सुख भी गए लेकिन कपड़े काफी सारे थे तो मीरा ने अपने पति से कहा आप छत पर से कपड़े लाने में मेरी मदद कर दीजिए.

मीरा के पति ने कहा ठीक है तुम ऊपर चलकर कपड़े समेट लो. मैं अभी 2 मिनट में नीचे दुकान से एक समान लेकर आ रहा हूं.

मीरा छत पर चली गई और उसने 15 मिनट में सारे कपड़े समेट लिए अभी तक उसके हस्बैंड कपड़े लेने नीचे से ऊपर नहीं आए थे. मीरा को धूप बहुत तेज लग रही थी. और वह थोड़ा सा गुस्सा हो नीचे आई.

मीरा ने देखा उसके हस्बैंड कूलर के सामने बैठकर मैगजीन पढ़ रहे हैं, और उसके सास और ससुर भी वहीं पास में ही बैठे हैं.

मीरा ने थोड़े से गुस्से में आकर बोला “मैं इतनी देर से छत पर कपड़े उतार कर तुम्हारा इंतजार कर रही थी तुम आए ही नहीं

इतना सुनते ही सासु और ससुर हंस पड़े. और मीरा के पति भी बुरी तरह से झेंप गए. 

जब उसने अपनी बात का दूसरा अर्थ समझा तो वह भी शरमा गई और तुरंत वहां से दूसरे कपड़े लेने छत पर चली गई. और पीछे पीछे उसके हस्बैंड भी वहीं आ गए और उसे बड़ी प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहे थे.
और कुछ देर बाद दोनों मुस्कुरा दिए. 

मीरा के अनुसार यह बात उन्हें जब भी याद आती है, तो वह अपने आप ही हंस पड़ती है. उसके बाद उन्होंने हमेशा यह कोशिश की, कि वह अब हमेशा सोच समझकर ही बोलेगी.

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