गर्भनाल की देखभाल करना

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हम बच्चे की गर्भनाल की सुरक्षा को लेकर चर्चा करने जा रहे हैं. असल में जब बच्चा पैदा होता है, तो उसकी गर्भनाल काटकर अलग कर दी जाती है. जो उसकी नाभि से जुड़ी होती है. बच्चे के पैदा होने के बाद काफी समय तक उसकी देखभाल करने की आवश्यकता होती है.

इसी टॉपिक पर हम चर्चा करने जा रहे हैं. क्योंकि कई सारे प्रश्न हमारे दर्शकों के इस संबंध में आए तो दोस्तों चर्चा करते हैं.

गर्भनाल की देखभाल करना

1. गर्भनाल क्या है

प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे के लिए पोषक तत्व का इंतजाम इस गर्भनाल के द्वारा ही होता है. मां के शरीर से पोषक तत्व इस गर्भनाल के माध्यम से बच्चे के शरीर में पहुंचते हैं, और बच्चे के शरीर का विकास होता है लेकिन पैदा होने के बाद गर्भनाल को काटकर अलग करना भी उतना ही आवश्यक होता है.

प्रेगनेंसी के दौरान 7 सप्ताह के बाद इसका विकासशुरू हो जाता है, और यह जन्म तक बच्चे से जुड़ी रहती है. गर्भनाल के द्वारा बच्चे को माता के शरीर से रक्त की सप्लाई बनी रहती है.  इससे इसे ऑक्सीजन और पोषक तत्व की प्राप्ति होती है, जो बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

हालांकि अगर इसके द्वारा कुछ नुकसानदायक तत्व बच्चे तक पहुंच जाते हैं, तो बच्चे को नुकसान भी हो सकता है.

जब बच्चा अपनी माँ के गर्भ से बाहर आता है, तो इस गर्भनाल को एक दर्द रहित प्रक्रिया के माध्यम से अलग किया जाता है, जहाँ एक छोर को बच्चे के शरीर से काफी करीब क्लॅम्प किया जाता है. इसके बाद एक छोटा ठूंठ यानी स्टंप रह जाता है जो 7 से 21 दिनों तक बच्चे की नाभी से जुड़ा रहता है.

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इन 7 से 21 दिनों तक इसकी काफी देखभाल करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि अगर इसमें किसी प्रकार का इंफेक्शन हो जाता है तो काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

2. गर्भनाल की देखभाल

इसमें कोई घबराने की बात नहीं है.  इसकी देखभाल करना काफी आसान होता है.  बस आपको छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना होता है.

2.1 गर्भनाल सुखा रहे

हालांकि इसे सूखा रखना काफी आवश्यक होता है, और यह एक प्राकृतिक क्रिया है. यह अपने आप ही इसे पूर्ण करने की कोशिश करता है. लेकिन हमें कोई मानवीय गलती के द्वारा इसे गिला नहीं करना है.

आपको ध्यान रखना है, कि डायपर इसके ऊपर नहीं आना चाहिए. अगर डायपर बड़ा हो रहा है तो ऊपर का हिस्सा काटकर इसे खुले में रहने दें या आप डायपर को मोड़ सकते हैं.

कुल मिलाकर यह बच्चे के मूत्र के संपर्क में नहीं आना चाहिए. बच्चे की सफाई करते समय आप इस बात का भी ध्यान रखें कि यह पानी से गिला नहीं हो.

2.2 गर्भनाल स्वच्छ रहे

यह एक प्रकार से घाव ही होता है. इसलिए इसकी स्वच्छता का भी ध्यान रखना अत्यधिक आवश्यक होता है.

अगर आपको यह अस्वच्छ या चिपचिपा लगता है, तो इसे आप सुति या गीले कपड़े से साफ करें, और फिर एक नरम सूखे रुमाल से या कपड़े से इसे आहिस्ते आहिस्ते पूछ ले.

आप किसी भी व्यक्ति के सलाह के अनुसार पहले अल्कोहल या साबुन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करें, क्योंकि आपके शिशु की त्वचा काफी मुलायम होती है, तो यह नुकसानदायक हो सकता है.

2.3 स्पंज स्नान करें

जब तक गर्भनाल ठूंठ आपके बच्चे से जुड़ा हुआ है, तब तक उसे टब में न नहलाएं.  बेहतर होगा कि स्पंज स्नान ही चुनें, यह सुनिश्चित करेगा कि नाभि वाला भाग लंबे समय तक पानी में ना रहे.

बच्चे के लिए खरीदा गया टब कुछ हफ्ते इस्तेमाल ना हो तो भी चलेगा, यदि कपड़े से थपथपाकर पोंछने से आपको असहजता महसूस हो तो उसे कुछ देर के लिए हवा दें.

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2.4 बच्चे के कपड़े समझदारी से चुनें

आपको बच्चे को ऐसे कपड़े नहीं पहने हैं, जो उसे थोड़े से टाइट हो ऐसा ना हो कि यह घाव रगड़ खा जाए और बड़ा हो जाए. आपको बच्चे को ढीले ढाले और सूती वस्त्र पहनाने चाहिए, ताकि वह सूखा भी रहे और किसी भी प्रकार से उस पर रगड़ नहीं लगे.  कुछ कपड़े ऐसे होते हैं, जो नेचुरल धागे से नहीं बने होते हैं. वह भी इसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.

2.5 जांच करते रहना

आपको गर्भनाल को बार-बार जांच करते रहना है, और उसे अपने आप खींचकर नहीं निकालना है. जब वह अपने आप सूखकर झड़ जाती है, वही सही तरीका होता है.

3. संक्रमण के लक्षण

किसी मानिए गलती से या वातावरण के कारण संक्रमण हो सकता है.  इसके लिए आपको कुछ लक्षण नजर आएंगे जैसे कि
गर्भनाल में सूजन या उसका लाल हो जाना
ठूंठ से दुर्गन्धित पदार्थ का बहाव होना
बच्चे में सामान्य से ज्यादा चिड़चिड़ापन होना
बच्चे के शरीर का तापमान सामान्य से ऊपर रहना
भूख चक्र में बदलाव आना
बच्चे के पेट में या उसके आस–पास सूजन महसूस होना

गर्भनाल किसी कारणवश खींची जाती है, तो उसकी वजह से भी उसमें रक्तस्राव हो सकता है. ऐसे में आपको चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए.

अगर आपको जो भी संक्रमण के लक्षण नजर आ रहे हैं. उसका इलाज स्वयं करने की कोशिश नहीं करें.

क्योंकि बच्चे का शरीर और बड़े बच्चे या बड़े व्यक्ति के शरीर में काफी अंतर होता है.  इसके लिए आपको चिकित्सक से ही सलाह लेना उचित रहता है.

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