इस कारण से आपकी प्रतिरोधक क्षमता आप की सुरक्षा कम और आपके बच्चे के सबसे ज्यादा करते हैं. जिसकी वजह से आप कुछ असुरक्षित हो जाते हैं. इस कारण से आपको छोटी-मोटी बीमारी बहुत जल्दी पकड़ लेती है.
खांसी, जुखाम,बुखार, फूड प्वाइजनिंग, पेट दर्द, सर दर्द, दस्त , कब्ज आदि समस्याएं काफी जल्दी आपको पकड़ लेती है. इनसे बचने के लिए आपको अपने खाने-पीने पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता होती है. कुछ चीजों का खाना सीमित करना पड़ता है, और कुछ चीजें खाना छोड़ देना पड़ता है.
आइए इस विषय पर चर्चा करते हैं.
प्रेगनेंसी के दौरान आपके शिशु की अपनी प्रतिरोधक क्षमता ना के बराबर होती है. इस दौरान वहां सिर्फ महिला की प्रतिरोधक क्षमता पर ही आश्रित होता है.
शिशु की सुरक्षा के लिए हमें खाने पीने की चीजों का चयन काफी सावधानी से करना होता है. कुछ खाद्य पदार्थ काफी नुकसानदायक हो सकते हैं.
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प्रेगनेंसी में कच्चा अंडा क्यों नहीं खाएं
प्रेगनेंसी में कच्चे अंडे को खाने से बचना चाहिए. क्योंकि इसमें साल्मोनेला जीवाणु के होने की प्रबल संभावना होती है.
इसलिए कच्चे अंडे को न खाकर आप उसे उबालकर जब तक कि वह ठोस ना हो जाए तब तक नहीं खाना चाहिए. हमेशा कंडे कच्चे अंडे से बने फूड आइटम्स खाने से बचें, जैसे कि केक में कच्चे अंडे का इस्तेमाल होता है, इसे खाने से बचें.
प्रेगनेंसी में कच्ची सब्जियां क्यों नहीं खाएं
वैसे तो कच्ची सब्जियां सबसे ज्यादा पौष्टिक होती है, लेकिन कच्ची सब्जियों में बैक्टीरिया और गंदगी रहने का खतरा भी उतना ही ज्यादा होता है.
सब्जियों को कच्चा खाने से नुकसान ज्यादा होने का खतरा बना रहता है. इसी श्रंखला में हमें सलाद को बिना सोचे समझे नहीं खाना चाहिए.
सलाद या फलों और सब्जियों की टॉपिंग को लेकर हमें सावधान रहना चाहिए. इनका प्रयोग करने से पहले हमें सुनिश्चित करना चाहिए, कि यह बैक्टीरिया फ्री है, और साफ पानी से धुली हुई है.
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प्रेगनेंसी में विशेष प्रकार के मांस और मांस से बने उत्पाद क्यों नहीं खाएं
गर्भावस्था के दौरान कलेजी (लीवर) का सेवन सुरक्षित नहीं है। हालांकि, अन्य सभी तरह के ताजा मीट-मांस खाए जा सकते हैं। बस यह सुनिश्चित करें कि आप मांस को अच्छी तरह पकाएं, जब तक उसमें बीच में कोई गुलाबी अंश न बचे.
आपको रोस्टेड किए गए मीट को खाने से पहले थोड़ा सावधानी रखने की आवश्यकता होती है क्योंकि यह कभी-कभी अच्छे से पके हुए नहीं होते हैं.
बेहतर है कि क्योर्ड मीट जैसे कि पार्मा हैम और सलामी का सेवन न किया जाए। इनसे लिस्टिरियोसिस और टोक्सोप्लास्माोसिस होने का खतरा रहता है.
प्रेगनेंसी में मछली क्यों नहीं खाएं, या खाए तो कैसे हैं
मछली के अंदर शिशु के विकास के लिए आवश्यक काफी सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. कुछ मछलियों के अंदर मर्करी पाया जाता है. जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है.
मछली खाने से पहले यह सुनिश्चित करें, कि आप ऐसी कोई मछली नहीं खा रहे हैं, जिसके अंदर मरकरी की उच्च मात्रा स्थित है. साथ ही साथ आपको इस बात का भी ध्यान रखना है, कि आप जो भी मछली खा रहे हैं, वह अच्छी तरह से पकी हुई होनी चाहिए.
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जिस प्रकार से कच्चे मांस को खाने से बचना है उसी प्रकार से मछली को भी कच्चा खाने से परहेज करना है किसी भी गर्भवती महिला को क्योंकि उस में बैक्टीरिया हो सकते हैं, आप कोशिश करें कि आप मछली को हफ्ते में मात्र एक बार या ज्यादा से ज्यादा दो बार ही खाएं.
कुछ चीज़ और डेयरी उत्पाद
• सफेद, फफूंदयुक्त पपड़ी वाली चीज़ जैसे कि ब्री, कैमेम्बर्ट और ब्लू वीन्ड चीज़. इसके अलावा अपाश्च्युरीकृत चीज़ से भी दूर रहें.
जैसे कि भेड़ या बकरी के दूध से बनी चीज़. इन सभी चीज़ में लिस्टीरिया जीवाणु हो सकता है. लिस्टीरिया जीवाणु लिस्टिरियोसिस इनफेक्शन पैदा कर सकता है, जो आपके शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है.
• अपाश्चयुरीकृत दूध और इससे बने डेयरी उत्पादों का सेवन गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं है. इनमें भोजन विषाक्तता पैदा करने वाले जीवाणु मौजूद हो सकते हैं.
• कच्चे दूध में भी जीवाणु हो सकते हैं, जो कि डायरिया या टीबी जैसे संक्रमण पैदा कर सकते हैं.
• बाहर रेस्टोरेंट आदि मे खाना खाते समय पनीर से बने खाद्य पदार्थ, जैसे कि टिक्का और कच्चे पनीर के सैंडविच और सलाद न खाएं. क्योंकि यह बता पाना मुश्किल होता है, कि पनीर ताजा है या नहीं.
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फलों के जूस
फल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. यह नेचुरल पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. वह प्रेगनेंसी में इनका प्रयोग करना भी चाहिए. लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना है, हम जिन फूल का प्रयोग कर रहे हैं, कोई भी फल ऐसा ना हो जो नेचुरल तरीके से न पकाया गया हो.
इन्हें खाने से पूर्व अच्छी तरह से धोना भी आवश्यक है. हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना है, कि बाजार से निकलवा कर ताजे फलों का जूस हमें प्रयोग में नहीं लाना है. घर पर ही जूस बनाकर गर्भवती महिला को पिलाना है.
बाजार में मुख्यतः सफाई का इतना ध्यान नहीं रखा जाता है. अगर ध्यान रखा भी जाता है, तो गाड़ियों के द्वारा जो धुआँ निकलता है उसके पोलूशन, धूल मिट्टी के कारण तथा बाजार में जमा कूड़े पर बैठने वाले मक्खी मच्छरों द्वारा फल दूषित हो ही जाते हैं.
फिर उसके बाद आप उसको पन्नी में लेकर आओगे, जो पॉलीथिन यूज़ करोगे वह स्वयं रोगों की जननी होती है.
पेय पदार्थ
बेहतर है, कि एक दिन में 200 मि.ग्रा. से ज्यादा कैफीन का सेवन न किया जाए. इसका मतलब है, कि एक दिन में दो कप इंस्टेंट कॉफी, दो कप चाय या पांच कैन कोला से ज्यादा का सेवन नहीं किया जाना चाहिए.
गर्भावस्था के दौरान कैफीन का अत्याधिक मात्रा में सेवन गर्भपात या कम जन्म वजन शिशु का कारण बन सकता है. इसकी बजाय आप कैफीनमुक्त (डीकैफीनेटेड) पेय ले सकती हैं.
• बेहतर है कि आप गर्भावस्था के दौरान मदिरा का सेवन बंद कर दें . यदि आप गर्भावस्था के दौरान भी पीना चाहें, तो सप्ताह में एक या दो बार, एक या दो यूनिट से ज्यादा शराब न लें. नशे में धुत्त तो कभी न हों.
• जल जनित बीमारियों के खतरे से बचने के लिए आपको सुनिश्चित करना होगा कि आप फिल्टर किया हुआ, बोतल बंद या उबला हुआ पानी ही पीएं.