प्रेगनेंसी के दौरान चौथे महीने में कुछ जरूरी टेस्ट – 4Th Month Pregnancy Important Tests

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नमस्कार दोस्तों, दोस्तों इस ARTICLE के माध्यम से हम चर्चा करने वाले हैं कि जरूरत पड़ने पर, चौथे महीने में कौन-कौन से स्कैन और परीक्षण किए जा सकते हैं.प्रेगनेंसी के चौथे महीने में अर्थात पहली तिमाही के बाद दूसरी तिमाही में काफी कुछ बदल जाता है सबसे पहले चर्चा करते हैं, कि अगर महिला को आवश्यकता पड़ती है तो इस दौरान महिला के कौन-कौन से स्कैन और परीक्षण डॉक्टर करा सकते हैं

चौथे महीने में कुछ जरूरी टेस्ट – Pregnancy ke 4th Month me Jaroori Test

वैसे तो महिला जब डॉक्टर के पास जाती है तो वह आवश्यक जांच हमेशा करते हैं लेकिन चौथे महीने में अगर महिला डॉक्टर के पास जाएगी तो वह आवश्यकता पड़ने पर भ्रूण के दिल की धड़कन को चेक कर सकते हैं.

प्रेगनेंसी के दौरान चौथे महीने में कुछ जरूरी टेस्ट – 4Th Month Pregnancy  Important Tests



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गर्भाशय के आकार को मापा जा सकता है जिससे बाहर से इस बात का आईडिया लगाया जाए कि भ्रूण का विकास ठीक हो रहा है कि नहीं हो रहा है.

साथ ही साथ महिला के वजन का भी मेज़रमेंट लिया जाएगा कि महिला का वजन सही तरह से बढ़ रहा है कि नहीं बढ़ रहा है.

और साथ ही साथ महिला के ब्लड प्रेशर को भी जांचा जाएगा तो यह तो सामान्य जांच है क्योंकि ब्लड प्रेशर का भी अपना एक महत्व होता है प्रेगनेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है क्योंकि शरीर में आवश्यकता की पूर्ति को लेकर हृदय को ज्यादा ब्लड पंप करना पड़ सकता है इसलिए ब्लड प्रेशर बढ़ने की संभावना रहती है. इसका मुख्य कारण सीधा-सीधा एक शरीर में दो जिंदगी का पालन पोषण होता है.

अगर आवश्यकता पड़ती है  तो चौथे महीने में महिला के यूरिन द्वारा शरीर में शुगर और प्रोटीन की जांच भी डॉक्टर करवा सकते हैं .

कुछ टेस्ट और स्क्रीनिंग वगैरह भी चौथे महीने में आवश्यकता पड़ने पर की जा सकती है लेकिन यह तभी की जाती है जब किसी प्रकार की परेशानी का सामना होता है.

चौथे महीने में आवश्यक टेस्ट और स्क्रीनिंग

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अल्ट्रासाउंड : आवश्यकता पड़ने पर इस महीने में अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है ब्रूम सही तरह से विकास कर रहा है नहीं कर रहा है प्लेसेंटा की स्थिति को देखने के लिए भी अल्ट्रासाउंड किया जाता है अगर गर्भ में एक या एक से ज्यादा बच्चे हैं अर्थात जुड़वा बच्चा है तो भी अल्ट्रासाउंड करने की आवश्यकता पड़ती है.

एम्नियोसेन्टेसिस टेस्ट : यह गर्भावस्था के 15 से लेकर 18 सप्ताह के बीच में कभी भी किया जा सकता है. यह टेस्ट तभी किया जाता है जब शिशु के स्वास्थ्य संबंधी परेशानी की शंका हो.

अल्फा-फेटोप्रोटीन (एएफपी) टेस्ट : यह टेस्ट गर्भावस्था के 16वें सप्ताह के आसपास तंत्रिका ट्यूब दोष का पता लगाने के लिए किया जाता है. वहीं, पहली तिमाही में इस दोष की जांच के लिए न्यूकल ट्रांसलुसेंसी टेस्ट होता है.

इंटीग्रेटेड प्रीनेटल स्क्रीनिंग : डाउन सिंड्रोम जैसे विकार का पता लगाने के लिए इस स्क्रीनिंग को चौथे महीने में किया जाता है.

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