दुर्वा घास क्या है, दूर्वा घास का आयुर्वेद में महत्व

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दुर्वा घास क्या है

दुर्वा घास के अनेक नाम दुर्वा घास को अलग-अलग स्थानों पर दरभा घास (Darbha Grass) या कुशा ग्रास के नाम से भी जाना जाता है। भारत में अलग-अलग प्रकार की दुर्वा ग्रास पाई जाती हैं, कुछ छोटी तो कुछ की पत्तियां काफी बड़ी होती है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। दरभा (देशमोट्य बिपिनता) एक उष्णकटिबंधीय घास है। वैज्ञानिकों द्वारा दरभा घास का डिटेल परीक्षण करने पर, माइक्रोस्कोप द्वारा उसका अध्ययन करने पर उसके अंदर बहुत ही अलग प्रकार की संरचनाओं का पता चलता है, जो अन्य प्रकार की घास में नहीं पाई जाती हैं। भारतीय समाज के अंदर दरभा घास का आयुर्वेदिक और धार्मिक दोनों प्रकार का महत्व होता है।

दुर्वा घास

दूर्वा घास का आयुर्वेद में महत्व

सनातन धर्म के अंदर दुर्वा घास का एक अपना धार्मिक महत्व भी है। इसे बहुत ज्यादा पवित्र माना जाता है, साथ ही साथ दरभा घास का आयुर्वेद के अंदर भी अपना एक स्थान स्थापित है। रिसर्च के द्वारा यह बात सामने आई है कि दरभा घास के अंदर एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं।

आयुर्वेद के अंदर दरभा घास मूत्र वर्धक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, अर्थात यह मूत्र के प्रभाव को बढ़ाने में सक्षम है। दुर्वा घास का प्रयोग आयुर्वेद के अंदर पेचिश और रक्तस्राव के इलाज में एक दवा के रूप में भी किया जाता है।

ग्रहण के दौरान सूक्ष्म जीवों को नियंत्रित करने वाली विकिरण का अभाव हो जाता है, जिससे एक कोशिकीय जीवो में अनियंत्रित वृद्धि होती है। ऐसे में दरभा घास को भोज्य पदार्थ के अंदर रख दिया जाता है, जिससे बैक्टीरिया की वृद्धि रुक जाती है, और ग्रहण के बाद में इस घास को वहां से हटा दिया जाता है।

ऐसे में दुर्वा घास का प्रयोग करके बनाई गई वस्तुओं का अपना एक स्थान होता है, जिसे पवित्र माना जाता है।

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