गरुड़ पुराण के 15वें अध्याय में गरुड़ महाराज द्वारा प्रभु से जब उत्तम पुत्र संतान प्राप्ति के विषय में प्रश्न पूछा गया तो तो प्रभु ने कहा यह बहुत ही उत्तम प्रश्न है और इसका ज्ञान हर एक मनुष्य को होना ही चाहिए. उत्पन्न होने वाली संतान जितनी गुणवान होगी, सत्यवान होगी, उत्तम चरित्र की होगी उतना ही समाज के चरित्र का विकास होगा.
उन्होंने कहा एक अति उत्तम संतान प्राप्ति के लिए पुरुष को रजो काल के दौरान अर्थात जब महिला के पीरियड चल रहे होते हैं, उस दौरान स्त्री के संपर्क में नहीं रहना है. यहां तक कि उसका मुख भी नहीं देखना है.
देवताओं द्वारा स्त्री को रजो काल का श्राप दिया गया था. इसलिए रजो काल के दौरान स्त्री की आभा और एनर्जी दोनों शुद्ध नहीं होती हैं, यह महिला की शुद्धि का समय माना गया है.
रजो काल के पांचवे दिन महिला को वस्त्र सहित स्नान कर स्वयं को शुद्ध कर लेना अति आवश्यक है. तत्पश्चात पांचवे दिन से पुरुष महिला के साथ गृह निवास कर सकते हैं लेकिन उन्हें संतान प्राप्ति के उद्देश्य से महिला के समीप अभी नहीं आना है.
रजोदर्शन के दिन से 7 दिन तक महिला पूजा पाठ करने योग्य नहीं मानी जाती है. 7 दिन के पश्चात वह देवताओं और पितरों की पूजा करने योग्य हो जाती है.
पांचवे, छठवें और सातवें दिन के गर्भाधान से संतान की प्राप्ति हो जाती है, लेकिन इन दिनों हुए गर्भाधान से मलिन चरित्र की संतान उत्पन्न होती है.
इसलिए उत्तम चरित्र की संतान के लिए सातवें दिन के बाद ही गर्भाधान के लिए कोशिश करनी चाहिए. अर्थात आठवें दिन के गर्भाधान से उत्तम चरित्र का पुत्र संतान प्राप्त होती है.
सम दिनों में गर्भाधान से पुत्र और विषम दिनों में गर्भाधान से पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है.
कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें
कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें पांचवें दिन के बाद से महिला को हमेशा मधुर और मीठा भोजन ही करना चाहिए महिलाओं को पांचवें दिन के बाद से तीखा, चटपटा, मसालेदार भोजन नहीं करना चाहिए.
पुरुष को भी दूध और दूध से बनी स्वादिष्ट व्यंजनों का ही उपभोग करना श्रेष्ठ रहता है. स्त्री के रजो काल से ही पुरुष को ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है.
पुरुष को भी रोजाना सुबह सूर्योदय से पहले उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर ध्यान, साधना और पूजा पाठ के लिए समय देना आवश्यक होता है. तत्पश्चात वह अपने कार्य क्षेत्र की ओर गमन करें.
संतान प्राप्ति की के दिन स्त्री और पुरुष दोनों का चित्त अति प्रसन्न और मन के भाव शुद्ध होने चाहिए. क्योंकि गरुण पुराण के अनुसार जैसा चित्त पुरुष और स्त्री का होता है उसी चित्त की संतान की प्राप्ति होती है.
संतान प्राप्ति की इच्छा से स्त्री और पुरुष दोनों को करीब आने से पहले अपने शरीर को शुद्ध कर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना आवश्यक है. बिछौना भी स्वच्छ होना चाहिए.
अगर मुंह का स्वाद भी उत्तम रहता है तो यह और भी अच्छा माना जाता है. अगर मुंह का स्वाद भी उत्तम रहता है तो यह और भी अच्छा माना जाता है.
गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र प्राप्ति के उपाय
गरुड़ पुराण में उत्तम संतान प्राप्ति के विषय में प्रमुखता से बताया गया है, लेकिन यहां पुत्र प्राप्ति और पुत्री प्राप्ति दोनों के समय को भी रेखांकित किया गया है.
केवल पुत्र प्राप्ति के लिए रजोदर्शन के दिन से 8वें दिन, 10वें दिन, 12वें दिन, 14वें दिन और 16वें दिन के मिलन से पुत्र प्राप्ति की संभावना सबसे अधिक बनती है. इन्हें सम दिनों के रूप में बताया गया है.
पुत्री प्राप्ति के लिए विषम दिन बताए गए हैं, जो रजोदर्शन से 9वां दिन, 11वां दिन, 13वां दिन, 15वां दिन और 17वां दिन बैठता है.
रजोदर्शन से 18 वें दिन के बाद से संतान प्राप्ति की संभावना नहीं होती है. इसलिए 18 वें दिन को संतान प्राप्ति का अंतिम दिन माना गया है.इसके बाद मिलन से संतान की प्राप्ति नहीं होती है.
यहां एक बात आप अवश्य ध्यान रखें कि संतान की प्राप्ति की कोशिश आप जितना 18 वें दिन के करीब करेंगे उतनी ही शक्तिशाली संतान की प्राप्ति होती है.