जिन दंपत्ति को पुत्र प्राप्ति की इच्छा होती है अगर वह संतान प्राप्ति की कोशिश कर रहे हैं तो पुत्र प्राप्ति के लिए किस करवट सोना चाहिए.
प्राचीन समय से ही सनातन धर्म के अनुसार पुत्र का परिवार के अंदर अपना ही एक महत्व होता है माना जाता है, कि पुत्र
वंश को आगे बढ़ाने का कार्य करता है, और पूर्वजों के प्रति किए जाने वाले सभी कार्यों का अधिकार पुत्र के पास ही होता है. इस कारण से परिवार में पुत्र की आवश्यकता महसूस की जाती है.
हालांकि परिवार में एक पुत्री का होना भी ना ही महत्व माना जाता है. अगर किसी परिवार के यहां पुत्री पहले से ही है,
और वह पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, तो वह इस उपाय को अपना सकते हैं. ईश्वर ने चाहा तो उनके यहां मनचाही संतान की प्राप्ति अवश्य होगी.
पुत्र कब पैदा होता है
इंसान के शरीर में नाक में इंसान की नाक में दो नासिका छिद्र होते हैं, जिनके द्वारा ऑक्सीजन का दोहन मनुष्य द्वारा
किया जाता है.
दाहिना नासिका छिद्र शरीर की गर्म शक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है, और शरीर को गर्म रखता है. वही बाया नासिका छिद्र शरीर की शीतल शक्ति को बढ़ाता है, और शरीर को ठंडा रखने का कार्य करता है.
जब शरीर का बाया नासिका छिद्र चलता है, अर्थात मनुष्य लेफ्ट नासिका छिद्र से सांस लेता है, तो शरीर के अंदर शीतलता
आती है, और राइट नासिका छिद्र से सांस लेने पर शरीर की उष्णता बढ़ती है.
अगर संतान प्राप्ति की इच्छा से दंपत्ति मिलन की कोशिश करते हैं, और उस वक्त अगर पुरुष का दाहिना नासिका छिद्र सांस
की के लिए प्रयोग में आ रहा है, और महिला का बाया नासिका छिद्र चल रहा है, तो उस वक्त मिलन से जो संतान की प्राप्ति होती है, वह पुत्र होने की संभावना सबसे अधिक रहती है.
अर्थात महिला का शरीर शीतलता की ओर और पुरुष का शरीर उष्णता की ओर अग्रसर होना चाहिए. तब पुत्र प्राप्ति की संभावना सबसे अधिक रहती है.
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TIP : अगर मिलन के दौरान महिला का राइट नासिका छिद्र चल रहा है, और पुरुष का लेफ्ट नासिका छिद्र चल रहा है अर्थात पुरुष का शरीर शीतलता और महिला का शरीर उष्णता से परिपूर्ण है, तब पुत्री होने की संभावना सबसे अधिक होती है.
पुरुष के शरीर में गर्मी का प्रवाह अर्थात दाया नासिका छिद्र सांस के लिए प्रयोग में आ रहा है या दाया नासिका छिद्र अर्थात सूर्य स्वर सांस के लिए प्रयोग में आ रहा है. तब पुत्र प्राप्ति के लिए रेस्पॉन्सिबिल शुक्राणु या क्रोमोसोम अत्यधिक एक्टिव रहते हैं. और पुत्र प्राप्ति की संभावना सबसे अधिक बनती है.
मिलन के दौरान पुरुष का सूर्य स्वर और महिला का लेफ्ट नासिका छिद्र अर्थात चंद्र स्वर चले, यह आवश्यक नहीं होता है.
इसके लिए हमें विशेष प्रयोजन करने की आवश्यकता होती है.
माना जाता है अगर पुरुष 15 मिनट तक बाई करवट लेटता है, तो उसका सूर्य स्वर अर्थात दाहिना स्वर चलने लगता है,
और शरीर में गर्मी उत्पन्न होने लगती है.
अगर पुरुष 15 मिनट दाहिनी करवट लेटता है दो तो 15 मिनट के अंदर अंदर चंद्र स्वर चलने लगता है और शरीर में शीतलता आने लगती है. यही कार्य महिला के साथ भी होता है.
पुत्र प्राप्ति के लिए किस करवट सोना चाहिए
अगर प्रश्न है पुत्र प्राप्ति के लिए किस करवट सोना चाहिए, अर्थात लेटना चाहिए तो उसके लिए बहुत साधारण सा नियम है.
संभोग करने से पहले पुरुष को 15 मिनट बाई करवट लेटना चाहिए और अपने सूर्य स्वर के चलने का इंतजार करना चाहिए
और महिला को 15 मिनट दाहिनी करवट लेट कर आपने चंद्र स्वर के चलने का इंतजार करना चाहिए.
उसके बाद संतान प्राप्ति के लिए कोशिश करनी चाहिए.
प्राचीन शास्त्रों में लिखी इस विधि के अनुसार प्राप्त होने वाली संतान पुत्र होती है.
यहां आपको छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना आवश्यक है.
यह आवश्यक नहीं है कि आप जब भी इस विधि का प्रयोग करें और संतान प्राप्ति की कोशिश करें तो महिला को गर्भ हर ही जाए. आप जब भी संतान प्राप्ति के लिए कोशिश करते हैं. आपको इस विधि का प्रयोग करना है. कुछ महीनों के लगातार प्रयास से सफलता अवश्य प्राप्त होगी.
निष्कर्ष
पुत्र प्राप्ति के लिए किस करवट सोना चाहिए. यह मात्र सूर्य और चंद्र नासिका के सही तरीके से चलने के विषय में ही है, ताकि उचित नासिका स्वर चल सके, और पुत्र प्राप्ति की संभावना बढ़ सके.
पुत्र प्राप्ति के लिए किस करवट सोना चाहिए इस बात को सोचने से अधिक इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि संबंध के समय पुरुष का सूर्य स्वर और महिला का चंद्र स्वर चलना चाहिए.
हम यहां यह भी बताना चाहते हैं, कि विज्ञान इस नियम की पुष्टि नहीं करता है.