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मां का दूध नवजात शिशु को ईश्वर की ओर से प्रदान की गई एक अनुपम भेंट है। यह हर रूप में शिशु को सिर्फ और सिर्फ लाभ ही पहुंचाता है। इसकी महत्ता इसी से समझी जा सकती है, कि मां के दूध में पर्याप्त पोषक तत्व होते हैं ।
शिशु को छह माह तक पानी पीने की भी आवश्यकता नहीं होती। मां के दूध से बच्चे को जो बच्चे स्तनपान करते हैं, उनका प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाता है। पीलिया, एलर्जी, अस्थमा व अन्य श्वास संबंधी बीमारियां, सर्दी−जुकाम को दूर रखता है।
- माँ और शिशु के बीच भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता है।
- माँ के दूध में पाये जाने वाले प्रतिरक्षी तत्त्वों के कारण स्तनपान करने वाले बच्चों में रोग-संक्रमण की सम्भावना 50 से 95 प्रतिशत कम होती है।
- स्तनपान करवाने से बचपन में शिशु की सांस फूलने और गंभीर एग्जिमा विकसित होने का खतरा कम हो सकता है।
- बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ती है।
- स्तनपान करने वाले शिशुओं के सामान्य से अधिक मोटा होने या वयस्क होने पर मधुमेह होने की संभावना कम होती है।
- एक महीने से एक साल की उम्र तक शिशु में ‘अचानक शिशु मृत्यु संलक्षण‘ का खतरा रहता है। माँ का दूध शिशु को इससे बचाता है।
- स्तनपान से लाभकारी (प्रोबायोटिक) बैक्टीरिया मिलते हैं, जो शिशु के पाचन तंत्र में किसी भी प्रकार की सूजन, दर्द या जलन (इनफ्लेमेशन) दूर कर सकते हैं।
- बच्चे का पाचन तंत्र मजबूत हो जाता है। उसे दस्त लगना, पेट फूलना, कब्ज होना कम हो जाते हैं।
- माँ के दूध में रोगप्रतिकारक तत्त्व भरपूर होते हैं, जो शिशु की मोटापा, मधुमेह, दमा एवं अन्य कई रोगों से सुरक्षा करते हैं।
- शिशुओं को छूत की बीमारी कम होती है क्योंकि माँ में एन्टीबॉडीज कण होने के कारण दूध के जरिये ये शिशु में भी पहुँच जाते हैं।
- स्तनपान शिशु को अपने शरीर का तापमान सामान्य रखने में मदद करता है। उसे गर्माहट प्रदान करने के अलावा, त्वचा से त्वचा का स्पर्श आपके और शिशु के बीच के भावनात्मक बंधन को और मजबूत बनाता है।
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- थोड़ा बड़ा होने पर जब कभी शिशु बीमार हो और कुछ खा न पा रहा हो, तो ऐसे में अगर वह स्तनपान कर रहा हो, तो उसे काफी आराम मिल सकता है। स्तनदूध उसे जल्दी ठीक होने में भी मदद कर सकता है।
- टीकाकरण करवाने से पहले या इसके तुरंत बाद शिशु को स्तनपान करवाने से उसे शांत करने में मदद मिल सकती है।
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- स्तनपान से शिशु की एलर्जी से सुरक्षा होती है तथा रोग-संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
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