प्रीमेच्योर डिलीवरी के 14 नुकसान | Premature Delivery Symptoms | Causes of Premature Delivery

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गर्भवती स्त्री के लिए प्रीमेच्योर डिलीवरी किसी बुरे सपने से कम नहीं होता है. क्योंकि एक तरह से उसकी सारी मेहनत पर पानी फिरने की आशंका रहती है.
चर्चा करने वाले हैं —

प्रीमेच्योर डिलीवरी के क्या-क्या लक्षण नजर आते हैं और
प्रीमेच्योर डिलीवरी होने से महिलाओं और बच्चे को किस प्रकार की समस्या भविष्य में आने का डर रहता है.

अगर कोई भी शिशु 37 हफ्ते से पहले जन्म ले लेता है तो उसे प्रीमेच्योर डिलीवरी की श्रेणी में रखा जाता है . प्रीमेच्योर डिलीवरी में शिशु का विकास संपूर्ण तरीके से नहीं होता है और उसे अपने जीवन को आगे बढ़ाने में काफी संघर्ष करना पड़ता है.

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डिलीवरी के कौन-कौन से लक्षण नजर आते हैं

दोस्तों वैसे तो लक्षण कई प्रकार की समस्याओं में एक जैसे आते हैं लेकिन यह कुछ ऐसे लक्षण है जो गर्भावस्था के दौरान आपको नजर आते हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से करना चाहिए.

  • अगर किसी भी महिला को जो कि गर्भवती है गर्भावस्था के दौरान खासकर तीसरे महीने में रक्त स्राव शुरू हो जाता है तो यह प्रीमेच्योर डिलीवरी के संकेत होते हैं.
  • अगर महिला को लगभग हर 10 मिनट के बाद पेट में कसावट महसूस हो जैसे कि मुट्ठी बंद कर रही हूं ऐसा लग रहा है तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए प्रीमेच्योर डिलीवरी का लक्षण माना जाता है. मेडिकल साइंस की बात करें तो इसे हम हिंदी में संकुचन का नाम देते हैं.
  • महिला को अगर अपने पेल्विक क्षेत्र में दबाव महसूस होता है जैसे कि शिशु नीचे की ओर आ रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
  • अगर महिला के पेट में हल्का हल्का सा दर्द बना हुआ है लगातार बना हुआ है तो भी यह प्रीमेच्योर डिलीवरी का एक संकेत माना जाता है. दर्द के और भी कारण होते हैं, लेकिन प्रीमेच्योर डिलीवरी में भी दर्द होता है.
  • अगर महिला को अपने पेट में इस प्रकार की ऐठन महसूस हो रही है, जैसा कि मासिक धर्म शुरू होने से पहले होती है, तो यह भी प्रीमेच्योर डिलीवरी का संकेत माना जाता है.
  • अगर किसी कारणवश महिला को डायरिया हो जाए और उसे पेट दर्द को या फिर बिना डायरिया की समस्या के भी पेट दर्द हो तब भी यह प्रीमेच्योर डिलीवरी का एक लक्षण माना जाता है.

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प्रीमेच्योर डिलीवरी से बच्चे और महिला पर प्रभाव

आज के बदलते दौर में गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में बढ़ते मानसिक तनाव और खराब खानपान के चलते प्रीमेच्योर डिलीवरी हो रही हैं। जिसमें बच्चे और मां को दोनों को खतरा रहता है। इसके साथ ही प्रीमेच्योर बेबी के जन्म के बाद विकास करने में भी काफी समय लग जाता है.

  • जो बच्चे प्रीमेच्योर पैदा होते हैं रिसर्च के द्वारा यह सामने आया है कि उन बच्चों में आगे चलकर मधुमेह की समस्या का खतरा बहुत ज्यादा रहता है.
  • प्रीमेच्योर बेबी अपनी मां का पहला दूध नहीं पी पाते हैं, जो कि अत्यधिक आवश्यक होता है. उन्हें ताकत देता है. इसकी कमी उन्हें जीवन भर खलती है.

  • प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चों को अस्पताल के अंदर नर्सरी में रखा जाता है जहां पर संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा होता है और पैसे का भी नुकसान होता है.
  • प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चों का इम्यून सिस्टम आवश्यकतानुसार मजबूत नहीं होता है, और उन्हें बीमारियां जल्दी पकड़ती है.
  • प्रीमेच्योर पैदा होने वाले बच्चों का कोई ना कोई अंग आवश्यकता से अधिक कमजोर रह जाता है जिससे संबंधित बीमारी उन्हें जीवन भर परेशान करती है.

  • जब किसी प्रीमेच्योर बेबी के जन्म होने की समस्या सामने आती है, तो इससे महिलाओं को भी काफी ज्यादा जटिलताओं का सामना करना पड़ता है

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  • प्रीमेच्योर डिलीवरी की संभावना देखते हुए कभी-कभी बच्चे की सुरक्षा के लिए सर्जरी करनी पड़ जाती है. जिसके कारण महिलाओं को काफी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ता है.
  • अक्सर देखा गया है कि जिन महिलाओं प्रीमेच्योर डिलीवरी की समस्या से गुजरना पड़ता है उनमें से कुछ महिलाओं को उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है.
  • वैसे तो प्रेगनेंसी के कुछ दिनों बाद तक तो हो सकती है. बाद में ठीक हो जाती है लेकिन प्रीमेच्योर डिलीवरी के केस में यह रक्तचाप की समस्या काफी लंबे समय तक चलती है.

  • अक्सर प्रीमेच्योर डिलीवरी के के से गुजरने वाली महिलाओं को नींद भी कम आने लगती है यह भी एक समस्या होती है.
  • अक्सर देखा गया है कि महिलाओं को मिर्गी और मधुमेह की समस्या भी जल्दी हो जाती है.
  • सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि जब प्रीमेच्योर डिलीवरी होती है, तो बच्चा दूध पीने की क्षमता नहीं रखता है, और महिलाओं को दूध का काफी ज्यादा प्रेशर रहता है. जिसके कारण उन्हें दर्द और काफी ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
  • प्रीमेच्योर बेबी होने से काफी ज्यादा परेशानी पूरे परिवार को हो जाती है. जिसके कारण महिला अपने आप को दोषी मान सकती है, और  उसके मन में तनाव और अवसाद की भावना घर कर सकती है वह डिप्रेशन में जा सकती है.
  • क्योंकि गर्भावस्था की साइकल पूरी नहीं होती है, बीच में से ही टूट जाती है, तो ऐसे में महिला काफी ज्यादा कमजोरी और थकान महसूस करती है, और वह अपने शिशु को भी उठाने में कभी-कभी असमर्थ रहती है.

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