गर्भावस्था के दौरान महिला को क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए
कौन-कौन से परीक्षण इस दौरान गर्भावस्था में किए जा सकते हैं
साथ ही साथ महिला को कौन कौन से व्यायाम करना सही रहता है
दोस्तों प्रेग्नेंसी का सातवां महीना काफी क्रिटिकल माना जाता है. सातवें महीने में भी बच्चा कभी-कभी जन्म ले लेता है, और वह बच्चा मेडिकल फैसिलिटी के साथ जीवित भी रह सकता है. तो कह सकते हैं कि बच्चे का विकास लगभग लगभग पूरा हो आया है. बस उसे अब अपने आप को मजबूत करना है.
यह ऐसा समय है जब शिशु को अत्यधिक पोषण की आवश्यकता होती है ताकि वह अपने शरीर को हष्ट पुष्ट और मजबूत कर सके ऐसे में आपको अपने भोजन का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है.
प्रेग्नेंसी के समय महिला को विटामिन सी की काफी आवश्यकता होती है विटामिन सी सीधे तौर पर तो इतना फायदेमंद नहीं होता है लेकिन विटामिन सी की एक क्वालिटी होती है कि यह आयरन को अवशोषित करने में मदद करता है. इसलिए आपको विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थ अपने भोजन में शामिल करने चाहिए. वरना आप कितना भी आयरन अपने भोजन में ले ले, अगर विटामिन सी शरीर में नहीं होगा तो वह शरीर को नहीं लगेगा.
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प्रेगनेंसी के कारण शरीर में जगह कम होने की वजह से पाचन क्रिया काफी ज्यादा प्रभावित हो जाती है. इसलिए अपने भोजन में ऐसे खाद्य पदार्थ शामिल करें जो पोस्टिको साथी साथ पचने में ज्यादा आसान हो.
फोलिक एसिड पहले दिन से ही बहुत ज्यादा आवश्यक पोषक तत्व होता है प्रेगनेंसी के समय यह शिशु के संपूर्ण विकास में काफी मदद करता है. शिशु की रीड की हड्डी, दिमाग के विकास विकास के लिए फोलिक एसिड लेना बहुत जरूरी होता है. यह शिशु को स्पाइना बिफिडा जैसे विकार से बचाने में भी मदद करता है. इसलिए कभी-कभी डॉक्टर गर्भवती स्त्री को फोलिक एसिड का अनुपूरक भी लेने का सजेशन देते हैं.
डी एच ए एक फैटी एसिड है. यह शिशु के दिमाग के लिए बहुत ज्यादा आवश्यक होता है. यह शिशु को कम से कम 5 साल की उम्र तक बहुत जरूरी होता है. गर्भावस्था के दौरान भी लास्ट तिमाही में इसकी आवश्यकता काफी होती है और यह रोजाना 200 एमजी डीजे गर्भवती स्त्री को लेने की सलाह दी जाती है. इसके लिए गर्भवती स्त्री कम मरकरी वाली मछली, संतरे का जूस, दूध अंडा आदि ले सकती है. इनमें डी एच ए काफी मात्रा में पाया जाता है.
शिशु जितना बड़ा होता जाता है, उसे उतनी ही ज्यादा पोषण की आवश्यकता होती है, और उतनी ही ज्यादा ब्लड महिला के शरीर में होना चाहिए और उसके अंदर हिमोग्लोबिन भी सही मात्रा में होना चाहिए. हिमोग्लोबिन बन्ना आयरन पर निर्भर करता है. इसलिए महिला को अपने भोजन में आर्यन संबंधित आयरन संबंधित खाद्य पदार्थ नियमित रूप से लेने चाहिए.
अब तक शिशु का विकास लगभग कंप्लीट सा हो जाता है, बस उसे अपने आप को मजबूत करना होता है, और मजबूत करने के लिए कैल्शियम की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है. इसलिए अपने भोजन में कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों को लेने से बिल्कुल भी परहेज ना करें.
मैग्नीशियम, कैल्शियम को अवशोषित करने में मदद करता है। इसके अलावा, यह पैरों में होने वाली ऐंठन से राहत दिलाता है।
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महिला को सातवें महीने में अक्सर
सीने में जलन
पैरों में सूजन
कब्ज जैसी समस्याएं होना आम बात है और यह पहले महीनों में भी रहता है इसलिए गर्भवती स्त्री को बच्चे के विकास के उद्देश्य से बहुत प्रकार के खाने से परहेज करना चाहिए. इसमें महिला को ज्यादा मसालेदार और फैट बढ़ाने वाली चीजों का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान महिला का वजन बढ़ना चाहिए लेकिन संयमित तरीके से ही बढ़ना चाहिए.
साथ ही साथ महिला को तेज मसाले वाला और चटपटा भोजन भी खाने से बचना चाहिए क्योंकि महिला का पाचन तंत्र सही तरीके से काम नहीं कर रहा होता है इस वजह से गैस एसिडिटी और हार्टबर्न की समस्या होने का डर रहता है जो बिना वजह असहज स्थिति पैदा करता है.
शरीर में सूजन आना आम बात है। इससे बचने के लिए आपको सोडियम की मात्रा कम करनी होगी। ज्यादा नमक वाली चीज़ें जैसे चिप्स, डिब्बाबंद आहार व बाज़ार का अचार खाना कम करना चाहिए.
अगर गर्भवती स्त्री नशे की आदी है मादक द्रव्यों का इस्तेमाल करती है या बहुत ज्यादा चाय कॉफी पीती है जिसमें कैफीन होती है यह सब चीजें गर्भावस्था में ज्यादा नुकसान करती हैं. अगर किसी भी प्रकार से महिला अभी तक इन सब चीजों को नहीं छोड़ पाई है तो उसे तुरंत छोड़ देना चाहिए.
हम आपको अब बता रहे हैं वह हम पहले भी कई बार बता चुके हैं पहले महीनों में जिक्र आ चुका है कि महिला को जंग फूड जैसे कि पिज़्ज़ा बर्गर सैंडविच चाट पकौड़ी समोसा और दूसरे स्ट्रीट फूड खाने से बचना चाहिए या कह सकते हैं कि महिला को मैदा युक्त भोज्य पदार्थ खाने से हमेशा बचना चाहिए यह बिल्कुल भी फायदा नहीं करते हैं नुकसान देते हैं और इनके हाइजीनिक होने पर भी प्रश्नचिन्ह हमेशा लगा रहता है.
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सातवां महीना चल रहा है तो आप डॉक्टर के संपर्क में तो होंगी ही इस दौरान डॉक्टर शिशु के विकास को लेकर पूरी जांच करेंगे.
शिशु के दिल की धड़कन को चेक किया जाएगा जिसे हम फीटल हार्ट मॉनिटरिंग कहते हैं.
आपके शरीर का रक्त संचार भी चेक किया जा सकता है.
गर्भाशय के आकार को भी देखा जाएगा और
पेशाब की जांच द्वारा संक्रमण है या नहीं है इस बात का भी पता लगाया जाएगा लेकिन यह आवश्यकता पड़ने पर ही होता है
इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर अल्ट्रासाउंड की मदद से भी काफी कुछ जांच किया जा सकता है